Monday, June 8, 2015

शायरी

​ना जाने क्यूँ नज़र लगी ज़माने की;
अब वजह मिलती नहीं मुस्कुराने की;
तुम्हारा गुस्सा होना तो जायज़ था;
हमारी आदत छूट गयी मनाने की।

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