पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया ...
और
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जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध किया..
परिणामस्वरुप ................
एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद !
अतः क्रोध तब पुन्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए..
और वही क्रोध तब पाप बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा को चोट पहुंचाए..
--शांति तो जीवन का आभूषण है..--
मगर अनीति और असत्य के खिलाफ आपका क्रोध क्षम्य है
और
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जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था कि उसने समय पर क्रोध किया..
परिणामस्वरुप ................
एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को प्रभु श्री राम की गोद !
अतः क्रोध तब पुन्य बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा के लिए किया जाए..
और वही क्रोध तब पाप बन जाता है जब वह धर्म और मर्यादा को चोट पहुंचाए..
--शांति तो जीवन का आभूषण है..--
मगर अनीति और असत्य के खिलाफ आपका क्रोध क्षम्य है
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